Saturday, March 17, 2018

मैं चाहता हूँ

मैं लिखना चाहता हूँ,
मन की गहराईयों से
झिंदगी के कुछ ऐसे पलों के बारे में जब
मैंने अपने आप को पहचाना
ईस दुनियां की दुनियादारी को माना
सच को झूठ और झूठ को सच करने की
निरन्तर हो रही साझिशों को
एकदम क़रीब से जानाl

मैं देखना चाहता हूँ वॉ ख़्वाब
जो हक़ीक़त बनने की गुंजाइश रखे न रखे
लेकिन उनमें ऐसा ख़याल, ऐसी ताजगी, ऐसी ताक़त हो
जो ना सिर्फ़ मुजे बल्के
उसे देखने का होंस्ला रखने वाले हरेक शख्श को
एक नई उम्मीद, नई लेहर, नई उमंग से भर देl

मैं गाना चाहता हूँ
बिलकुल उस परिन्दे की तरह
जो आसमाँ की ऊँचाइयों को छूता हुवा
जीवन की जबरदस्त महफ़िलों का
अकेले ही लुफ्त उठाता रहता हैं
फिकर नहीं
उसे सुनने वाले क्या सोचे ना सोचेl

हे इश्वर, हे जग-रक्षक ,
मुजे ऐसे लिखने की सोच दे
ऐसे देखने की दृष्टि दे
ऐसे उड़ने की हिम्मत दे
ऐसे जीने का जझबा देl

- (kb/original/17-03-2018)

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