Saturday, July 6, 2019

Khubsurat Log

मुंबई....

गर्मी के दिनों में थी, शनिवार की वो रात
सूरज ढला और, सब आ गए बाहर एक साथ
लम्बी लेम्बोर्गिनी और भाड़े पे ली हुई कार
पार्टीयां हो गई थी चालू, सब जा रहे मैइन बज़ार

कुछ ढूँढ रहे कोई एक मौका
उन्हें जानना था कि तुम कौन हो
हवा का आ गया एक जोका
चैन ले गया सब का ऐसे जो

मैं बैठा था बीच में, अपनी प्रियतमा के साथ
कर रहे थे समझने की कोशिश, हम इस हलचल को
पागलोंकी तरह घूम रहे लोग, ले कर हाथो में हाथ
कोई इधर जाये कोई उधर, जूठा प्यार जताने को

हम इस में फिट नहीं बैठते यार
क्योकि हम जैसे है वैसे रहते है ओ ओ
मैं कुछ जरूर करना चाहता था
उस अफरा तफरी से बाहर निकलने को

तुम मस्त दिखती हो
इधर वो सवाल मत पूछा करो
सिर्फ एक बात से डरता हु ओ ओ
की कही हम भी बन न जाए, कौन?
"खूबसूरत लॉग"

(To be continued...) 






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