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मेरा कुछ सामान
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मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा हैं,
सावन के कुछ भीगें भीगें दिन रखे हैं,
और मेरे इक खतमें लिपटी रात पडी हैं,
वो रात बुजा दो, मेरा वो सामान लौटा दो.....
पतज़ड में कुछ पत्तोकी गिरने की आहट
कानों में इकबार पेहनके लौट आई थी,
पतज़ड की वो शाख अभी तक कांप रही हैं
वो शाख गिरा दो, मेरा वो सामान लौटा दो.....
इक अकेली छत्तरी में जब आधे आधे भीग रहें थे,
आधे सूखे आधे गीले सूखा तो मैं ले आयी थी,
गीला मन शायद बिस्तरके पास पड़ा हो,
वो भीजवा दो, मेरा वो सामान लौटा दो....
एकसो सोलाह चाँदकी रातें, एक तुम्हारें कांधे कांटे,
धीमी महकी थी खूश्बू, जुठ मुठ के शिकवें कुछ,
जुठ मुठ के वादें भी सब याद करा दूँ ,
सब भीजवा दो, मेरा वो सामान लौटा दो.....
एक ईजाज़त दे दो बस, जब इसको दफ्नाऊंगी,
मैं भी वही सो जाऊंगी, मैं भी वही सो जाऊंगी।
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