राहों पे रेह्ते हैं
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राहों पे रेह्ते हैं, यादों पे बसर करते हैं,
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राहों पे रेह्ते हैं, यादों पे बसर करते हैं,
खुश रहो एह्ले वतन, हम तो सफ़र करते हैं……
जल गये जो धूप में तो साया हो गये,
आस्मां का कोई कोना थोडा सो गये,
जो गुज़र जाती हैं बस,
उसपे गुज़र करते हैं l
राहों पे रेह्ते हैं…
उड़ते पैरों के तले जब बेह्ती हैं ज़मीं,
मूडके हमने कोई मंज़िल देखी ही नहीं,
रातदिन राहों पे हम शामो-शहर करते हैंl
राहों पे रेह्ते हैं……
ऐसे उजडे आशियानें तिनके उड़ गयें,
बस्तियों तक आते आते रस्ते मूड गये,
हम ठेहर जायें जहा, उसको शहर करते हैंl
राहों पे रेह्ते हैं, यादों पे बसर करते हैं,
खुश रहो एह्ले वतन, हम तो सफ़र करते हैं……
-- गुलज़ार
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